बांदा। जिले में चलाया जा रहा सुपोषण कार्यक्रम देश के लिए मॉडल बन सकता है। यहां चलाया गया नया इनोवेशन नायाब है। इसका उल्लेख करते हुए पोषण अभियान, नई दिल्ली ने बांदा मॉडल सुपोषण कार्यक्रम को अपनी वार्षिक रिपोर्ट 2019-20 में शामिल किया है। कहा है कि उत्तर प्रदेश में बांदा पहला ऐसा जनपद है जहां इनोवेशन के जरिए कुपोषित व सैम बच्चों का समुदाय आधारित प्रबंधन किया जा रहा है।
गौरतलब है कि जिलाधिकारी हीरा लाल की पहल पर जनपद में कुपोषण को लेकर विशेष जागरुकता अभियान की शुरूआत हुई। सर्वे के मुताबिक यहां 45 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार बांदा में लगभग हर दो में एक बच्चा कुपोषण का शिकार है। यानी पांच वर्ष तक के बच्चों की आधी आबादी कुपोषित थी। कुपोषण की तीन अवस्थाएं बताई गई हैं। इनमें सामान्य बच्चों की तुलना में सैम बच्चों की जान का खतरा 9 गुना ज्यादा होता है।
वर्ष 2017 में नरैनी ब्लाक में कुपोषित बच्चों को लेकर 41 परियोजना की शुरूआत की गई थी। वहां इससे 38 फीसदी कुपोषित बच्चों में सुधार पाया गया। अभियान में 1,27,903 बच्चों का वजन किया गया। 1,16,176 बच्चों की जांच के लिए लंबाई और ऊंचाई नापी गई।
सैम बच्चों की संख्या 5.7 प्रतिशत पाई गई। कुपोषित बच्चों की माताओं से उनके बच्चों के लिए पौष्टिकता युक्त खाना बनवाकर उन्हें खिलाया जा रहा है। ताकि माताओं के व्यवहार में परिवर्तन आ सके। उन्हें यह पता चले कि बच्चों को क्या खिलाना चाहिए?