हीरा लाल, आईएएस, यूपी कॉडर
2003 से 2006 के बीच मेरी तैनाती संभल में थी। संभल में बहुत ऊंची-ऊंची ताजिया बनती हैं। मोहर्रम यहां का सबसे संवेदनशील त्योहार है। स्थानीय मंत्री और थानाध्यक्ष की आपसी सांठगांठ से लंबा ताजिया बना जो रास्ते में पीपल के पेड़ की टहनी के कारण रुक गया। मुस्लिम पक्ष ताजिया को खंडित करके निकालने को तैयार नहीं था तो हिंदू पक्ष पीपल की टहनी को काटने देने के लिए राजी नहीं हो रहा था। रात 11 बजे मुझे सूचना मिली। मैं सीओ के साथ मौके पर गया। दोनों पक्षों को समझाने की कोशिश शुरू की लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं हो रहा था। कई बार एक पक्ष के कुछ लोग पीपल पर चढ़कर टहनी काटने लग जाते। बड़ी मुश्किल से उन्हें उतारा जाता। यह सूचना आसपास के शहरों और जिलों में फैल गई। सभी ने ताजिया आगे बढ़ाने देने से इंकार कर दिया। चारों तरफ अशांति का माहौल बनने लगा। महसूस होने लगा कि बहुत बुरा होने वाला है। इस प्रकरण की वजह से कई जिलों में शांति-व्यवस्था बिगड़ सकती थी। सुबह तीन बजे तक इस पूरे घटनाक्रम की राजनीति समझ में आ गई कि इसके पीछे क्या खेल चल रहा है। तीन बजे स्थानीय मंत्री को जगाया। अगले दो घंटे में वार्ता के दौर शुरू हुए। ताजिया को पहले दो खंड करके पीपल के पेड़ के नीचे से निकालने को भीड़ को राजी कर लिया गया। फिर उसे जोड़कर आगे के लिए बढ़ा दिया गया। पीपल के पेड़ की टहनी काटने की जरूरत नहीं पड़ी। दरअसल, डीएम-एसएसपी से नाराज चल रहे स्थानीय नेताओं का दबाव बनाने का यह पूरा खेल था। पहले शांति-व्यवस्था की समस्या पैदा कर दो। फिर अनुरोध पर उसे हल करा कर अहसान लाद दो। यह नए तरीके का अनुभव था।
कमिश्नर ने गलत करवाना चाहा
तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने नैनीताल से अलग उधमसिंह नगर जिला बना दिया। मुझे रामनगर उप-तहसील का कार्यकारी मजिस्ट्रेट/उप-जिलाधिकारी बनाया गया। पहले यह काशीपुर तहसील की उप-तहसील था। काशीपुर उधमसिंह नगर में चला गया। इसे परगना के रूप में विकसित करने की चुनौती थी। किसान मंडी के किसान भवन में आवास बनाया। मंडी के किसान सभागार में उप-जिलाधिकारी कोर्ट/कार्यालय बनाया। जिम कॉर्बेट के कारण वीआईपी के भ्रमण की वजह से संवेदनशीलता हमेशा बनी रहती थी। एक जमीन को लेकर कुमाऊं आयुक्त ने मुहर सहित अपने नैनीताल स्थित आवास पर बुलाया। कहा कि ओएसडी के पास जमीन संबंधी कागज हैं। हस्ताक्षर कर दो। एक टाइपशुदा प्रमाण-पत्र था। इसमें एक बड़े भूखंड का मालिक, बॉम्बे के एक नामी-गिरामी फिल्म एक्टर को प्रमाणित करना था। मैं तथ्यों का पता लगाने का बहाना बनाकर चला आया। हस्ताक्षर नहीं किए। हिम्मत से काम लिया। अन्यथा बहुत बड़े संकट में पड़ जाता। बाद में इस आयुक्त ने घुमाकर मुझे सजा दी। नगर पालिका परिषद रामनगर भंग थी तो मैं प्रशासक भी था। मैंने अवैध रूप से नगर पालिका के एक गोदाम पर काबिज व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई कर दी। यह बड़ा खुराफाती और छोटा पत्रकार था। कोई डर की वजह से उस पर कार्रवाई नहीं करता था। मैंने कर दी थी। नतीजा यह हुआ कि सभी ने मिलकर सांसद नारायण दत्त तिवारी के जरिए मेरा तबादला पिथौरागढ़ करा दिया। मुझे अच्छा नहीं लगा। मैं लखनऊ आकर तत्कालीन मुख्य सचिव माता प्रसाद से मिला। जब मैंने उन्हें पूरे तथ्यों से अवगत कराया तो उन्होंने तबादला रोक दिया। इस बीच जिलाधिकारी बदल गए थे। नए जिलाधिकारी मेरे काम की तारीफ करते थे, लेकिन मुझे हटाना चाहते थे। कुछ गलत कार्यों के लिए मामूली दबाव भी बनाया। लेकिन मैंने वो काम नहीं किए। बाद में जिलाधिकारी द्वारा मेरे खिलाफ लिखा गया लेकिन मेरे पास सबूत थे, इसलिए कुछ नहीं हुआ।
अवैध कार्यों को मिलता ‘सरकारी संरक्षण’
रामनगर नैनीताल के बाद मेरा स्थानांतरण बाराबंकी हो गया। मुझे हैदरगढ़ का उप-जिलाधिकारी बनाया गया। मैंने तहसीलदार के अर्दली को हटा दिया। तहसील में लंबित सभी मुकदमों की पत्रावलियों की जानकारी अर्दली को थी। अर्दली की सांठगांठ वहां के कुछ दलालों के साथ थी। उनमें कुछ अधिवक्ता भी शामिल थे। अर्दली के खिलाफ भ्रष्टाचार की भी काफी शिकायतें थीं। अर्दली ने अधिवक्ताओं को मेरे खिलाफ हड़ताल के लिए खड़ा कर दिया। सभी अधिवक्ता आयुक्त फैजाबाद से मिले। आयुक्त ने मुझे हटाने को कह दिया। इस बीच मैंने लघु सिंचाई विभाग में एक घोटाले में एमडी सहित कई अन्य के खिलाफ एफआईआर करा दी। इसको लेकर सभी बीडीओ मुझे हटाने के लिए जिलाधिकारी से मिले। मुझे हैदरगढ़ से हटाकर मुख्यालय में सजा के तौर पर संबद्ध कर दिया गया। मैंने महसूस किया कि मुझे जिलाधिकारी को बताकर एफआईआर करानी चाहिए थी लेकिन मैं यह भी जानता था कि अगर जिलाधिकारी को बताता तो एफआईआर कराने की अनुमति नहीं मिलती। मेरे अच्छे कार्य की वजह से मेरे खिलाफ दलाल खड़े हो गए थे और वे अपने मकसद में कामयाब भी रहे। मेरा तबादला बरेली कर दिया गया। वहां मुझे उप-जिलाधिकारी बहेड़ी बनाया गया। वहां प्राइवेट चीनी मिल घटतौली करता था। कई सालों से यह धंधा चल रहा था। चीनी मिल वाले बरेली मंडल के आयुक्त के काफी नजदीकी थे क्योंकि वह बरेली के जिलाधिकारी भी रह चुके थे। बाट-माप निरीक्षक भी मिल के प्रभाव में थे। मैंने स्वयं औचक निरीक्षण किया और घटतौली पकड़ी। एफआईआर भी कराई। यह बात चीनी मिल से ज्यादा आयुक्त को बुरी लगी। इस कार्यवाही के बाद मेरा स्थानांतरण जिले से बाहर कर दिया गया। लेकिन जनप्रतिनिधियों ने प्रयास किया और मेरा तबादला रुक गया। मैंने काम जारी रखा। रामलीला की कीमती जमीन अनियमित रूप से एक व्यक्ति के नाम अंकित थी, इसे भी खारिज करा दिया था। सभी विरोधी शक्तियों ने एक होकर पुन: मेरा ट्रांसफर करा दिया।
Reference Link: https://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/nbtguestblog/book-excerpts-from-dynamic-dm-by-dr-heeralal/