यूपी के बांदा जिले में स्थित कालिंजर में गुरुवार से 5 दिन का मेला शुरू हो रहा है। अगर आप बुंदेलखंड की विरासत के अलावा बुंदेली खान-पान और संस्कृति को देखना समझना चाहते हैं, तो आपका कालिंजर आना चाहिए।
भगवान शिव की तपोस्थली रही बुंदेलखंड के कालिंजर किले में गुरुवार से 5 दिन का मेला शुरू हो रहा है। पाषाणकालीन भित्ति चित्रों और गुप्तकालीन शिल्प के लिए मशहूर, चंदेल-बुंदेला राजाओं का मान रहे इस विश्वप्रसिद्ध दुर्ग में हो रहा मेला लोगों को बुंदेलखंड की विरासत के साथ ही बुंदेली खान-पान और संस्कृति के अनूठे रंगों से रूबरू कराएगा। देश-विदेश से यहां पहुंच रहे टूरिस्ट इस महोत्सव में पहली बार हॉट एयर बैलून के जरिए आस-पास के दुर्लभ और दुर्गम नजारों का लुत्फ भी उठा सकेंगे।
मुगलों के समय भी लगभग अजेय रहे कालिंजर किले में महोत्सव को भव्य बनाने और इसे वर्ल्ड टूरिज्म में शुमार कराने के लिए यूपी का बांदा जिला प्रशासन जी-जान से जुटा है। कालिंजर फोर्ट विकास समिति के अध्यक्ष और जिले के डीएम हीरा लाल कहते हैं कि इस मेले में 100 से ज्यादा दुकानें और गैलरियां आध्यात्मिक, (ललित कलाओं से जुड़ी) सांस्कृतिक, सेहत, शिक्षा, खेल-कूद और ग्रामीण विकास जैसी विभिन्न थीम पर आधारित होंगी। हर गैलरी में लोगों को कुछ न कुछ नया सीखने को मिले, यही मकसद है। आम लोगों के लिए चल रही सरकारी योजनाओं की जानकारी यहां मिलेगी ही, सेहत की मुफ्त जांच भी होगी।
महोत्सव की संयोजक सचिव और नरैनी की एसडीएम वंदिता श्रीवास्तव ने बताया कि बुंदेली गीत-संगीत के कार्यक्रमों के साथ ही अवधी-भोजपुरी समेत देश के कोने-कोने से आ रहे कलाकारों के कार्यक्रम भी होंगे। चारकूला नृत्य, ब्रज की होली के रंग देखने को मिलेंगे। बुंदेली खान-पान जैसे माहेरी, लाटा के साथ अन्य सभी स्वादिष्ट व्यंजनों के स्टॉल भी होंगे। मेले को इको-फ्रेंडली यानी प्लास्टिक फ्री रखने के लिए खान-पान में पत्तों से बने दोने-पत्तल इस्तेमाल होंगे।
नीलकंठ मंदिर के नीचे उकेरी गई काल भैरव की विशाल प्रतिमा
1200 फीट की ऊंचाई पर विंध्य पर्वतमाला पर बना है किला, 90 डिग्री पर पहाड़ पर सीधी खड़ी दीवारें लोगों को अचंभे में डालती हैं, रॉक क्लाइंबिंग के लिए उपयुक्त है। पश्चिमी हिस्से पर नीलकंठ मंदिर, पहाड़ काटकर मंदिर के ऊपर बने दो जलकुंड, नीचे उकेरी गई कालभैरव की विशाल प्रतिमा ध्यान खींचती हैं। राजा-रानी महल, चर्म रोगों को ठीक करने के लिए मशहूर बुड्ढ़ा-बढ़िया तालाब, पातालगंगा, पांडवकुंड, कल्पवृक्ष अन्य दर्शनीय स्थल हैं। मान्यता है, समुद्रमंथन से निकले विष का पान कर जब शिव का कंठ नीला पड़ा, तो कालिंजर में विश्राम कर उन्होंने यहां मौजूद औषधियों से काल पर विजय प्राप्त की थी, इसलिए जगह का नाम कालिंजर पड़ा।
कालिंजर मेले के लिए सजने लगे स्टॉल
कैसे पहुंचें
कालिंजर किले तक पहुंचना बेहद आसान यहां। अगर आप हवाई मार्ग से आना चाहते हैं, तो आपको सबसे नजदीकी एयरपोर्ट खजुराहो और कानपुर उतरना पड़ेगा। जहां से आप रेल मार्ग अथवा सड़क मार्ग से आप कालिंजर तक पहुंच सकते हैं। रेल मार्ग से कालिंजर आने के लिए आपको बांदा रेलवे स्टेशन (58 किमी) या सतना रेलवे स्टेशन (85 किमी) उतरना होगा। दोनों ही स्टेशनों से बस और टैक्सी की विशेष सुविधा मौजूद है।
Publication Link: https://navbharattimes.indiatimes.com/travel/religious-trip/5-day-kalinjar-festival-in-this-fort-of-bundelkhand-starts-from-20-february/articleshow/74215154.cms