Publication: NBT - Nav Bharat Times

Published Date: 02-Oct-2019

कुपोषण से 'चिंटू' को बचाने के लिए बुंदेलखंड के जिले में 5000 वाटिकाएं

दुनिया में सबसे ज्यादा कुपोषण के शिकार बच्चे भारत में हैं। यहां 5 साल से कम का हर तीसरा बच्चा कुपोषित है। यूपी का बांदा जिला कुपोषण में एक चौथाई कमी लाने में कामयाब रहा है।

फरवरी 2019 में जब 7 महीने का चिंटू मिला तो उसका वजन 5.5 किलो से ज्यादा नहीं था। शरीर की हर हड्डी बाहर से साफ नजर आ रही थी। लेकिन कुपोषण के खिलाफ बांदा जिला प्रशासन की मुहिम से वह तीन महीने में पूरी तरह तंदुरुस्त हो गया।

यूपी में बांदा जिले के भरवारी गांव का यह चिंटू कुपोषण के गंभीर रूप (सैम) के खिलाफ प्रशासनिक जंग की कामयाबी का जीता-जागता उदाहरण है। इसी मुहिम के चलते बुंदेलखंड का यह जिला जनवरी से मई 2019 के बीच अपने यहां कुपोषण के मामलों में एक चौथाई कमी ला सका है। इन 5 महीनों में बांदा में कुपोषण के शिकार बच्चों में से 25% को इससे उबारा गया है। इनमें से सबसे अहम चिंटू जैसे सैम बच्चों में 17.1% फिर से तंदुरुस्त हुए हैं। शरीर में पोषण की कमी और बीमारियां कुपोषण का प्रमुख कारण हैं। अशिक्षा और गरीबी के चलते भोजन में जरूरी पोषक तत्वों की कमी से बच्चे इसके आसान शिकार होते हैं। सबसे गंभीर स्थिति सैम बच्चों की है, क्योंकि उनके बचने के आसार सबसे कम होते हैं।

बांदा के जिलाधिकारी (डीएम) हीरा लाल कहते हैं, 'कुपोषण के खिलाफ इस जंग की प्रेरणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय पोषण अभियान और इसे प्रमुखता से लागू करने की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा से मिली। मैंने जब यहां कमान संभाली तो पता चला कि पानी के बाद यहां सबसे बड़ी समस्या कुपोषण है। लेकिन हैरत की बात यह थी कि लोग इसे समस्या मानते ही नहीं थे। मैंने इसके खिलाफ जागरूकता शुरू की। हमारे नरैनी ब्लॉक में यूनिसेफ ने कुपोषण पर काफी काम किया था, उनके प्रॉजेक्ट की स्टडी के बाद उसे पूरे बांदा जिले में लागू करवाया।'

जिलाधिकारी कहते हैं, 'कुपोषण के खिलाफ एक ही प्रमुख हथियार है पोषण। मकसद, जल्द से जल्द कुपोषित बच्चों की पहचान और उन तक पोषण पहुंचाना था। हमने हेल्थ, सप्लाइ, बाल विकास, पंचायती राज, ग्रामीण विकास जैसे विभागों को कुपोषण के खिलाफ एकजुट कर साझा कार्यक्रम बनाया। इसके तहत उन लोगों के बीपीएल कार्ड बनवाए, जो गरीबी रेखा से नीचे थे। इससे उन्हें पोषण युक्त राशन मिला। जिले के पोषण पुनर्वास केंद्रों के अलावा 5000 पोषण वाटिकाएं शुरू कीं, जो हर आंगनवाड़ी में कुपोषण के शिकार लोगों तक पहुंचकर उन्हे सही खाद्यान्न, इलाज पहुंचाने में मददगार थे।'

डीएम हीरालाल बताते हैं, 'ये सभी ग्रुप अपनी रोजमर्रा के काम को वॉट्सएप ग्रुप के जरिए शेयर करते थे, ताकि रियलटाइम रिऐलिटी चेक होता रहे। जो बच्चे किन्हीं वजहों से अस्पताल नहीं पहुंच सकते थे, उन्हें आशा वर्करों और एएनएम की मदद से घर तक मदद पहुंचाई गई। खास बात यह कि हमने पोषण के रूप में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध चीजों का ही इस्तेमाल किया। इस कार्यक्रम के लिए अलग से किसी फंड की व्यवस्था नहीं की गई। नतीजा, कुपोषण हारने लगा है। सितंबर को राष्ट्रीय पोषण माह के रूप में मनाया गया है। कुपोषण के खिलाफ सरकारी कार्यक्रमों में बांदा शीर्ष जिलों में शुमार रहा है।'

मोदी सरकार का लक्ष्य 2022 तक देश में कुपोषण के हालिया स्तर को घटाकर 25% तक लाना है। लेकिन बिहार में खाली पेट लीची खाने से 162 कुपोषित बच्चों की मौत की खबरें इस लक्ष्य के प्रति बड़ी चुनौती हैं। वहीं, कुपोषण के खिलाफ बांदा मॉडल उम्मीद की किरण दिखाता है। जिलाधिकारी हीरा लाल कहते हैं कि अभी हमारी यह यात्रा शुरू हुई है, हमें अभी लंबा सफर तय करना है।

मुंह चिढ़ाते कुपोषण के ये आंकड़े
-दुनिया में सबसे ज्यादा कुपोषण के शिकार बच्चे भारत में हैं
-यहां 5 साल से कम का हर तीसरा बच्चा (35.7%) कुपोषित है
-इनमें 43.6% जनजाति, 42.5% दलित और 38.6% पिछड़े वर्ग से हैं
-बिहार (48.3%) और यूपी (46.3%) का हाल तो सबसे खराब है

उम्मीद की किरण दिखाता बांदा
-यूपी का बांदा जिला कुपोषण में एक चौथाई कमी लाने में कामयाब रहा
-2018 में वहां 47% बच्चे कुपोषित थे, मई 2019 में इसमें 25% कमी का अनुमान है
-गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों (सैम) बच्चों का ग्राफ भी पहले से 17.1% गिरा है

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